अक्तूबर महीना
दिनांक :- २९/१२/२०२१
दिन :- बुधवार
मेरी डायरी मेरी साथी ! इस बार अक्तूबर महीने में दुर्गा पूजा आया था । इस बार ०६ अक्टूबर को महालया था । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महालया और पितृ पक्ष अमावस्या एक ही दिन मनाया जाता है। इस बार यह ०६ अक्तूबर को मनाया गया था । महालया के दिन से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती हैं । दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष यह ०७ अक्तूबर से शुरू हुआ था जो १५ अक्टूबर दशमी तक चला था । बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्व होता है । इस दिन ही मूर्तिकारों द्वारा माॅं दुर्गा की ऑंखें तैयार की जाती हैं तत्पश्चात माॅं दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप भी आज के ही दिन दिया जाता है दरअसल माॅं दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारीगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम महालया से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं लेकिन महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर सिर्फ थोड़ा सा ऑंखो का काम छोड़ दिया जाता है और महालया के दिन ही मूर्तिकार माॅं दुर्गा की ऑंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का काम करते हैं लेकिन इस काम से पहले वह विशेष पूजा भी करते हैं । महालया के बाद ही माॅं दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और माॅं की मूर्तियां भी आज के ही दिन पंडालों में स्थापित भी की जाती हैं । महालया के साथ ही १५ दिनों से चलें आ रहें पितृपक्ष का भी समापन होता है । महालया के दिन ही मूर्तिकार के यहां से ढोल - नगाड़ों के साथ माॅं दुर्गा की प्रतिमा को पंडाल में लाकर स्थापित कर दस दिनों तक उनकी पूजा - अर्चना की जाती हैं । बंगाली समाज के लोग आज के दिन सुबह अंधेरा होने से पहले ही जग जातें हैं और जितनी दूर उनसे संभव हो पैदल चलने की कोशिश करते हैं । ऐसा वें लोग अपने समस्त परिवारजनों के संग करतें हैं जिनमें बच्चें , युवा और बुजुर्ग भी शामिल होते हैं । आज के दिन सड़कों पर सुबह से ही चहल पहल शुरू हो जाती है । लोग एक - दूसरे से मिलकर दुर्गा पूजा की बधाई भी देते हैं । आज का दिन इनके लिए बहुत शुभ माना जाता हैं ।
" माता के आगमन का
होता है यह पावन दिन
शीश झुकाकर दुर्गा माॅं को
नमन करते हैं नवरात्रि के दिन "
०७ अक्तूबर से १५ अक्तूबर तक इस साल नवरात्रि मनाई गई । नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि में मैं और मेरे पतिदेव जी फल खाकर ही माता दुर्गा की पूजा - अर्चना करते हैं । पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है और उसके साथ ही नवरात्रि का शुभारंभ हो जाता है जो नौ दिनों तक चलता है । जैसे पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है उसी तरह दूसरे तीसरे चौथे पांचवें छठे सातवें आठवें और नौवें दिन अलग - अलग माताओं की पूजा - अर्चना कर नवरात्रि का व्रत पूर्ण किया जाता है। इन नौ दिन मैं पाठ करती हूॅं इसकारण मुझे किसी और चीज के लिए बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया क्योंकि ससुर जी गुजर गए इस कारण एक साल तक हमें पूजा - पाठ नहीं करना था लेकिन मैं दूर बैठकर ही इन नौ दिनों तक माता का नाम मैंने जरूर लिया था । प्रत्येक वर्ष ०९ अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है । जापान की राजधानी टोक्यो में १९६९ में हुए यूपीयू कांफ्रेंस में ९ अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी । डाक सर्विस में काम करने वालों का योगदान हमारे जीवन में शुरू से ही रहा है । जब यह मोबाइल इंटरनेट और ईमेल वगैरह नहीं थें यह विभाग और इसमें कार्यरत लोग ही हमारे चेहरे पर खुशी और हंसी का कारण बनते थे । याद तों हैं ना ! वह डाकिए बाबू के साइकिल की ट्रिंग - ट्रिंग और उनका दूर से चिल्लाना । फलां ( नाम लेकर ) की चिट्ठी आई है । खाकी वर्दी पहने , ऑंखो में चश्मा लगाएं सर पर खाकी टोपी और कंधे पर लटका झोला .. अभी भी मेरे स्मृति पटल पर डाकिया बाबू की वही छवि अंकित है । बचपन में मुझे डाक टिकट संग्रह करने का बहुत शौक था । चिट्ठियों के ऊपर लगे डाक टिकटों को मैं लिहाफे सहित सहेजकर रखती थी । ऐसा मैं क्यों करती थी मुझे मालूम नहीं लेकिन ऐसा करना मुझे पसंद था । अभी भी कुछ डाक टिकट हैं जो मेरे पास सुरक्षित हैं । अब तो ना ही चिट्ठियां लिखती हूॅं और ना ही किसी की चिट्ठियों का इंतजार ही रहता है । अब तो मोबाइल से ही काम चल जाता है । जो लिखना हैं बोलो या टाइप कर लिख दो । मोबाइल नही था उससे पूर्व चिट्ठियां तो लिखी ही थी जो आज भी मैंने संभाल कर रखी हुई हैं क्योंकि मेरी लिखी चिटि्ठयां जब पतिदेव छुट्टी में घर आते थे मुझे ही पकड़ा देते थे जिन्हें मैंने बक्से में आज भी संभाल कर रखी हुई हैं ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! इस साल दशहरे के दिन एक अलग ही बात मेरे साथ हुई । यह बात आज से पहले यानी कि इस दशहरे से पहले मैं नहीं जानती थी और यह बात मुझे मेरी मकान मालकिन दीदी ने बताई थी । उन्होंने उस दिन मुझे बताया था कि हमारे यहां आज के दिन कुछ ऐसी परंपराएं भी निभाई जाती हैं जिनसे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है । आज की इस युग में सुख - समृद्धि और शांति किस इंसान को नहीं चाहिए । मैंने भी उनसे कहा था कि बताइए मैं भी वह करने के लिए तैयार हूॅं जिसके कारण हमारे जीवन में सुख समृद्धि और शांति बनी रहे। उन्होंने मुझे बताया कि हमारे यहां एक परंपरा है दशहरे के दिन पान खाना। मैंने उनसे कहा कि आप लोग तो लगभग हर दिन पान खाते हैं । मेरी बात सुन वह मुस्कुराने लगी और कहने लगी कि यह रोज की बात नहीं दशहरे की बात है । हम रोज खाएं या ना खाएं लेकिन दशहरे के दिन पान जरूर खाते हैं क्योंकि आज के दिन पान खाने के धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं । वह दीदी यानी कि हमारी मकान मालकिन यहाॅं के केंद्रीय विद्यालय की विज्ञान की शिक्षिका भी हैं । उन्होंने आगे कहा कि पान बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना गया है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत से जोड़कर देखा जाता है । उन्होंने आगे कहा कि अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इस समय मौसम में बदलाव होता रहता हैं जिसके कारण संक्रामक बीमारियों का हमारे ऊपर खतरा बढ़ जाता है । पान संक्रामक बीमारियों से हमारी रक्षा करता है । बहुत लोगों का यह भी कहना हैं कि नवरात्रि में अधिकतर भक्तगण व्रत रखते है । नौ दिनों तक फलाहार करने से और अन्न ना खाने के बाद एकाएक जब नवमी या दशहरे के दिन व्रती यदि अन्न का भोजन करता है तो तो उसकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित होने लगती हैं । ऐसे में खाना खाकर यदि पान खा लिया जाए तो भोजन को पचने में आसानी होती हैं यही सब कारण है कि दशहरे पर रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाया जाता है । उन्होंने ही मुझे सादा पान जिसमें जर्दा नहीं होता वह पान लाकर खाने के लिए दिया था । मैंने भी अपने पाचन तंत्र को सही रखने के लिए और अपने आप को संक्रामक बीमारी से बचाने के लिए उस दिन पान खा लिया था और इस तरह मैंने अपने और मकान मालकिन के परंपराओं का भी निर्वहन किया । मैं चाहती तो यह कहकर उन्हें मना कर सकती थी कि यह आपकी परंपरा होगी मेरी नहीं लेकिन मैंने ऐसा उन्हें नहीं कहा । दीदी बड़े ही प्यार से अपनी परंपराओं से मुझे अवगत करा रही थी । ऐसे में मैं उनके प्यार को कैसे नहीं देखती ? कभी-कभी तो मैं यह सोचती हूॅं कि उनका और मेरा पूर्व जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा तभी तो वह मुझे अपना समझती है । कमाल की बात यह थी कि पान खाने के बाद मेरे पेट में कोई गड़बड़ी नहीं हुई । दीदी की परंपराओं की बात मानें या पाचन संबंधी जो बातें । बात चाहे जो भी हो लेकिन इसका फायदा मेरे शरीर को हुआ और यही बात मुझे अच्छी लगी । मैं यह नहीं कहती कि सदियों से चली आ रही परंपराएं गलत है और हमें इसका विरोध करना चाहिए। मैं तो बस इतना कहना चाहती हूॅं कि जिस चीज से हमारा और लोगों का भला हो । वह सदियों से चली आ रही है क्या अभी शुरू की गई हो ... वही हमारे लिए सबसे बेहतर है बाकी कुछ नहीं । उस दिन पान खाने से दीदी के परंपराओं का निर्वहन उनकी नजरों में हुआ होगा लेकिन मेरी नजर में मैंने यह अपने पाचन क्रिया के लिए और अपने शरीर के लिए किया था जो सही भी हुआ था ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! इसी महीने तीन-चार दिन तक लगातार बारिश भी हुई थी जिस कारण हमारा जीवन अस्त - व्यस्त रहा । चारों तरफ पानी ही पानी देखने में अच्छा लगता है लेकिन जब वही पानी सड़क पर आकर चलने में परेशानी पैदा करता है तब अक्सर मन खिन्न हो जाता है यही मेरे साथ भी हो रहा था । इस महीने कुछ अलग मैंने देखा भी । वह यह था । हमारे गृहनगर मुजफ्फरपुर में तो लक्ष्मी पूजन दीपावली के दिन होता है लेकिन यहां अगरतला में जहां हम रह रहें हैं वहाॅं पर लक्ष्मी पूजन आज आठ बजे शाम में हुआ । दीदी ने पूजा में शामिल होने के लिए बुलाया था तों मैं गई भी पतिदेव जी भी साथ में थे और बच्चे भी । पूजा में शामिल होकर अच्छा लगा । वैसे भी कुछ अलग देखने की इच्छा मुझमें कुछ ज्यादा ही रहती हैं । अपने यहां दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा तो मैंने बचपन से देखी हुई थी लेकिन दशहरे के पांचवें दिन जों यहां पर लक्ष्मी पूजन होता है उसे मैं पहली बार उस दिन देख रही थी । पूरे विधि - विधान के साथ लक्ष्मी पूजन पंडित जी ने करवाया उसके बाद प्रसाद वितरण हुआ । प्रसाद वितरण के बाद दादा ... दीदी और उनके बेटे ने पटाखे भी फोड़े जिनमें उन्होंने हमें भी शामिल किया था । सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था चूंकि ऐसा हम पहली बार कर रहे थे इस कारण भी मन प्रसन्न था ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! इसी महीने २४ तारीख को मेरा करवा चौथ का व्रत भी था । कुछ पंक्तियां मैंने उस दिन लिखी थी 👇
आज फिर करवाचौथ का शुभ दिन आया है
माथे पर सिंदूर नाक में नथनी हाथों में चूड़ियां
गले में आपके नाम का मंगलसूत्र और हाथों में
आपके नाम की मेंहदी भी लगवाया है ।
व्रत तो रखा है मैंने और मेरी एक ख्वाहिश भी हैं
मेरे व्रत का सिर्फ इतना हो असर
मेरी इस दुनियां से विदाई सुहागिनों जैसी हों
करवा माता और चंद्रदेव से यही गुजारिश है ।
करवाचौथ व्रत सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं । मैंने भी रखा था । इस व्रत में जैसा कि तुम जानती ही हो कि रात में चांद देखकर इस व्रत को तोड़ लिया जाता है । पति ही पानी पिलाकर इस निर्जला व्रत को तुड़वाते हैं । उस दिन करवा चौथ का व्रत अच्छे से हो गया था लेकिन उसके बाद मालूम नहीं क्यों मुझसे खड़ा ही नहीं होया जा रहा था ? मैंने खाना तो शाम में ही बना लिया था लेकिन पूरियां नहीं बनाई थी । आटा गूंथकर छोड़ दिया था । जैसे - तैसे पूरियां बनाई थी । दीदी को भिजवाया उसके बाद बच्चों को दिया । मैं और पतिदेव जी एकसाथ खाने बैठे थे । मुझसे खाया ही नहीं गया । जैसे - तैसे खाकर लेटने चली गई थी ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! अक्तूबर महीना भी ठीक-ठाक ही गुजर गया था । हर महीने कुछ ना कुछ परेशानी तो जिंदगी में चलती ही रहती है । इस महीने में भी आई थी जो बीतते दिनों के साथ खत्म भी हो गई थी । नवंबर महीने की खट्टी मीठी यादों के साथ तुमसे फिर से मुलाकात होगी । अब मुझे जाने की इजाजत दो । तुम मेरा इंतजार करना मैं फिर से वापस आऊंगी । तब तक के लिए 👇
🤗🤗अपना ख्याल रखना खुश रहना 🤗🤗
" गुॅंजन कमल " 💓💞💗
# डायरी
Ayshu
29-Dec-2021 03:59 PM
great
Reply
Gunjan Kamal
29-Dec-2021 06:14 PM
Thanks
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